पुरुष में धैर्य नहीं है। पुरुष बड़ा अधीर है, सदा जल्दी में है। अगर पुरुष को बच्चे पालने पड़े तो संसार में बच्चे नहीं बचेंगे-उतना धैर्य नहीं है। अगर पुरुष को गर्भ संभालना पड़े तो गर्भपात ही गर्भपात हो जाएंगे संसार में; कोई पुरुष गर्भ संभालने को राजी न होगा–नौ महीने की प्रतीक्षा किसे हो सकती है;
पुरुष जल्दी में है, तेजी में है। समय का उस बड़ा बोध है। स्त्री अनंत में जीती है, पुरुष समय में जीता है —
मैं मुल्ला नसरुद्दीन के घर मेहमान था। हम दोपहर के विश्राम के बाद बैठकर गपशप कररहे थे–कि पत्नी ने झांका और उसने कहा कि सुनो जी, बच्चों को संभालना, मैं थोड़ा डाक्टर के पास जाती हूं, दांत निकलवा आऊं। मुल्ला उछलकर खड़ा हो गया, कोट में हाथ डाल दिया और बोला, ठहरों फजलू की मां, तुम्हीं बच्चों को संभालो, दांत मैं निकलवा आता हूं। बच्चों को संभालना ऐसा उपद्रव है! उतना धैर्य पुरुष के पास नहीं। बच्चे को बड़ा करना तो बहुत मुश्किल होगा–बीस-पच्चीस वर्ष लगते हैं, तब कहीं कोई बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो पाता है।
ओशो