बुद्धत्व की अवस्थाएं

0
5590
What Is Prayer?
What Is Prayer?

बुद्धत्व की दो अवस्थाएं: अर्हत और बोधिसत्व 

बुद्धत्व की दो अवस्थाएं हैं। दो प्रकार से व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाता है। एक है, जिसको अर्हत कहा है, और दूसरा, जिसे बोधिसत्व कहा है।

अर्हत का मतलब होता है, ऐसा बुद्ध, जो बुद्ध होने के बाद जगत की चिंता नहीं करेगा, महा-निर्वाण में लीन हो जाएगा। उसके बंधन गिर गए, उसका दुख समाप्त हो गया। उसके शत्रुओं का नाश हो गया, इसलिए उसको नाम दिया अर्हत। उसके जितने शत्रु थे, वह नष्ट हो गए। अब वह महाशून्य में लीन हो जाएगा। बुद्धत्व में कोई कमी नहीं है उसके, लेकिन वह दूसरों के लिए नाव नहीं बनता है। उसका काम पूरा हो गया।

स्त्री प्रेम में आंख बंद कर लेती है, समाधि में भी आंख बंद कर लेती है। और जब परम समाधि उपलब्ध होती है, तो वह बिलकुल भूल जाती है कि कोई बाहर बचा है, वह भीतर लीन हो जाती है। बुद्धत्व तो उपलब्ध हो जाता है स्त्री को, लेकिन बोधिसत्व नहीं बनती है।

बोधिसत्व का मतलब है, ऐसा बुद्ध, जो स्वयं जान गया हो, लेकिन अभी लीन नहीं होगा। पीठ फेर लेगा लीनता की तरफ और पीछे जो लोग रह गए, उनके लिए रास्ता बनाएगा, उनको साथ देगा, उनके लिए नाव निर्मित करेगा, उनको नाव में बिठाकर मांझी बनेगा, उनको यात्रा-पथ पर लगाएगा।

तो बोधिसत्व स्त्री अब तक नहीं हो सकी, और कभी हो भी नहीं सकेगी। वह स्त्री के व्यक्तित्व में बात नहीं। अर्हत हो सकती है, बुद्ध हो सकती है।

ओशो

समाधि के सप्त द्वार