जितने दूर का नाता होगा, उतना ही बच्चा सुंदर होगा। स्वस्थ होगा, बलशाली होगा। मेधावी होगा। इसलिए फिक्र की जाती रही कि भाई बहन का विवाह न हो। दूर संबंध खोजें जाते है। जिलों गोत्र का भी नाता न हो, तीन-चार पाँच पीढ़ियों का भी नाता न हो। क्योंकि जितने दूर का नाता हो, उतना ही बच्चे के भीतर मां और पिता के जो वीर्याणु और अंडे का मिलन होगा, उसमें दूरी होगी तो उस दूरी के कारण ही व्यक्तित्व में गरिमा होती है।
इसलिए मैं इस पक्ष में हूं कि भारतीय को भारतीय से विवाह नहीं करना चाहिए; जापनी से करे, चीनी से करे, तिब्बती से करे, इरानी से करे, जर्मन से करे, भारतीय से न करे। क्योंकि जब दूर ही करनी है जितनी दूर हो उतना अच्छा।
और अब तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है बात। पशु-पक्षियों के लिए हम प्रयोग भी कर रहे है। लेकिन आदमी हमेशा पिछड़ा हुआ होता है। क्योंकि उसकी जकड़ रूढ़ि गत होती है। अगर हमको अच्छी गाय की नस्ल पैदा करनी है तो हम बाहर से वीर्य-अणु बुलाते है। अंग्रेज सांड का वीर्य अणु बुलाते है। भारतीय गाय के लिए। और कभी नहीं सोचते कि गऊ माता के साथ क्या कर रहे हो तुम यह। गऊ माता और अंग्रेज पिता, शर्म नहीं आती। लाज-संकोच नहीं। मगर उतने ही स्वस्थ बच्चे पैदा होंगे। उतनी ही अच्छी नस्ल होगी।
इसलिए पशुओं की नसलें सुधरती जा रही है, खासकर पश्चिम में तो पशुओं की नसलें बहुत सधुर गई है। कल्पनातीत,साठ-साठ लीटर दूध देने वाली गायें कभी दूनिया में नहीं थी। और उसका कुल कारण यह है कि दूर-दूर के वीर्याणु को मिलाते जाते है। हर बार। आने वाले बच्चे और ज्यादा स्वास्थ और भी स्वारथ होते जाते है। कृतों की नसलों में इतनी क्रांति हो गई है कि जैसे कुत्ते कभी नहीं थे दुनियां में। रूस में फलों में क्रांति हो गई हे। कयोंकि फलों के साथ भी यही प्रयोग कर रहे है। आज रूस के पास जैसे फल है, दुनिया में किसी के पास नहीं है। उनके फल बड़े है, ज्यादा रस भरे है, ज्यादा पौष्टिक हे। और सारी तरकीब एक है: जितनी ज्यादा दूरी हो।
भारत की दीन हीनता में यह भी एक कारण है। भारत के लोच-पोच आदमियों में यह भी एक कारण है। क्योंकि जैन सिर्फ जैनों के साथ ही विवाह करेंगे। अब जैनों की कुल संख्या तीस लाख है। महावीर को मरे पच्चीस सौ साल हो गए। अगर महावीर ने तीस जोड़ों को संन्यास दिया होता तो तीस लाख की संख्या हो जाती। तीस जोड़े काफ़ी थे। तो अब जैनों का सारा संबंध जैनों से ही होगा। और जैनों में भी, श्वेतांबर का श्वेतांबर से और दिगंबर का दिगंबर से। और सब श्वेतांबर से नहीं तेरा पंथी का तेरा पंथी से और स्थानक वासी का स्थानक वासी से। और छोटे-छोटे टुकड़े है। संख्या हजारों में रह जाती है। और उन्हीं के भीतर गोल-गोल घूमते रहते है लोग। छोटे-छोटे तालाब है और उन्हीं के भीतर लोग बच्चे पैदा करते रहते है। इससे कचरा पैदा होता है। सारी दुनिया में सबसे ज्यादा कचरा इस भारत में है। फिर तुम रोते हो कि यह अब कचरे का क्यों पैदा हो रहा है। तुम खुद इस के जिम्मेदार हो।
ब्राह्मण सिर्फ ब्राह्मणों से शादी करेंगे। और वह भी सभी ब्राह्मणों से नहीं; कान्यकुब्ज ब्राह्मण कान्यकुब्ज से करेंगे। और देशस्थ -देशस्थ से, और कोंकणस्थ -कोंकणस्थ से। और स्वास्थ ब्राह्मण तो मिलते ही कहां हे। मुझे तो अभी तक नहीं मिला। कोई भी। और असल में, स्वस्थ हो उसी को ब्राह्मण कहना चाहिए। स्वयं में स्थित हो, वही ब्राह्मण है।
और यह जो भारत की दुर्गति है, उसमें एक बुनियादी कारण यह भी है कि यहां सब जातियां अपने-अपने धेरे में जी रही हे। यहीं बच्चे पैदा करना, कचड़ -बचड़ वही होती रहेगी। थोड़ा-बहुत बचाव करेंगे। मगर कितना बचाव करोगे। जिससे भी शादी करोगे। दो चार पाँच पीढ़ी पहले उससे तुम्हारे भाई-बहन का संबंध रहा होगा। दो चार पाँच पीढ़ी ज्यादा से ज्यादा कर सकते हो। इससे ज्यादा नहीं बचा सकते। जितना छोटा समाज होगा उतना बचाव करना कठिन हो जायेगा। जितना छोटा समाज होगा, उतनी संतति में पतन होगा। थोड़ा मुक्त होओ। ब्राह्मण को विवाह करने दो जैन से जैन को विवाह करने दो हरिजन से हरिजन को विवाह करेने दो मुसलमान से, मुसलमान को विवाह करने दो ईसाई से। तोड़ो ये सारी सीमाएं।