कनक्यूशियस की बड़ी प्राचीन कथा है कि कनफ्यूशियस एक गांव से गुजरता था और उसने एक स्त्री को एक कब्र पर पंखा करते देखा। बड़ा हैरान हुआ। इसको कहते हैं प्रेम! पति तो मर गया, कब्र को पंखा कर रही है?
उसने पूछा कि देवी, सुना है मैंने पुराणों में कि ऐसी देवियां हुई हैं, लेकिन अब होती हैं सोचता नहीं था। लेकिन धन्य! तेरे दर्शन हुए, चरण छू लेने दे।
उसने कहा, रुको। पहले पूछ तो लो कि क्यों पंखा हिला रही है?
क्यों हिला रही है? कनफ्यूशियस ने पूछा।
उसने कहा कि जब मेरा पति मरा तो उसने कहा कि देख, विवाह तो तू करेगी ही, लेकिन जब तक मेरी कब्र न सूख जाए, मत करना।
पंखा हिला रही हूं?
कब्र को सुखा रही हूं। गीली है ।
अब पति को वचन दे दिया।”
हम अपने लिए ही रोते हैं। जब कोई मर जाता है तब भी हम अपने लिए रोते हैं।
ओशो