तुमने सुना न, नानक जब यात्रा करते हुए मक्का पहुंचे तो पैर करके मक्का की तरफ सो गए। निश्चित पंडित—पुरोहित नाराज हुए। मक्का के ठेकेदार नाराज हुए। खबर मिली उनको तो भागे आए और कहा कि देखने से साधु—पुरुष मालूम होते हो, शर्म नहीं आती कि काबा के पवित्र पत्थर की तरफ पैर करके सो रहे हो?
तो पता है नानक ने क्या कहा ? नानक ने कहा कि मेरी भी मुश्किल है, तुम अच्छे आ गए। मेरी थोड़ी सहायता करो। मेरे पैर उस तरफ कर दो जिस तरफ परमात्मा न हो।
कहां करोगे ये पैर? कहानी तो और आगे जाती है मगर मैं मानता हूं, कहानी यहीं पूरी हो गई, असली बात यहीं पूरी हो गई, बाकी तो जोड़ी हुई बात है, प्रीतिकर है बाकी बात। कहानी तो और आगे जाती है कि पंडित—पुजारियों ने क्रोध में नानक के पैर पकड़कर दूसरी दिशाओं में मोड़े लेकिन जिन दिशाओं में पैर मोड़े, उसी दिशा में काबा का पत्थर मुड़ गया।
यह तो प्रतीक है। मैं इसको ऐतिहासिक घटना नहीं मानता; काबा के पत्थर इतनी आसानी से नहीं मुड़ते। और काबा का पत्थर अकेला नहीं मुड़ सकता, उसके साथ पूरी काबा की बस्ती को मुड़ना पड़ेगा। काबा की बस्ती अकेली नहीं है, उसके साथ पूरा अरब मुड़ेगा। अरब अकेला नहीं है, उसके साथ पुरी दुनिया को मुड़ना पड़ेगा। दुनिया अकेली नहीं है, सब चांदत्तारे…..बहुत झंझट हो जाएगी। यहां चीजें जुड़ी हैं। यहां एक का हटना, सबका अस्त—व्यस्त होना हो जाएगा।
नहीं, इतना उपद्रव नानक पसंद भी न करेंगे। यह कहानी पीछे जोड़ दी गई मगर कहानी फिर भी महत्त्वपूर्ण है, जितना जोड़ा गया वह भी महत्त्वपूर्ण है, वह भी इशारा है। वह भी यह कह रहा है कि जिस तरफ पैर करोगे, उसी तरफ काबा का पत्थर है। मोड़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि हर पत्थर काबा का पत्थर है। अगर काबा का पत्थर पवित्र है तो ऐसा कोई पत्थर नहीं है जो पवित्र न हो। नासमझ हैं जो काबा जाते हैं पत्थर चूमने। जिनमें समझदारी है वे अपने घर के सामने जो मील का पत्थर लगा है उसको चूम लेंगे, सात चक्कर लगाकर घर वापिस लौट आएंगे, काबा की यात्रा पूरी हो गई।
जिस पत्थर को चूमोगे, उसी को पाओगे। जीसस ने कहा है : तोड़ो हर पत्थर को और मुझे पाओगे, उठाओ पत्थर को और मुझे छिपा पाओगे। वही है, उसके अतिरिक्त और कोई भी नहीं है।
गुरू प्रताप साध की संगति