पुरानी बाइबिल में बड़ी अनूठी कथा है—जैकब की। जैकब ईश्वर की खोज करने में लगा है। उसने अपनी सारी संपत्ति बेच दी, अपने सारे प्रियजनों, अपनी पत्नी, अपने बच्चे, अपने नौकर, सबको अपने से दूर भेज दिया। वह स्वात नदी तट पर ईश्वर की प्रतीक्षा कर रहा है। ईश्वर का आगमन हुआ।
लेकिन घटना बड़ी अदभुत है, कि जैकब ईश्वर से कुश्ती करने लगा! अब ईश्वर से कोई कुश्ती करता है! लेकिन जैकब ईश्वर से उलझने लगा। कहते हैं, रात भर दोनों लड़ते रहे। सुबह होते—होते, भोर होते—होते, जैकब हार पाया। जब ईश्वर जाने लगे, तो जैकब ने ईश्वर के पैर पकड़ लिए और कहा, ‘अब मुझे आशीर्वाद तो दे दो!’ ईश्वर ने कहा, ‘तेरा नाम क्या है?’ तो जैकब ने अपना नाम बताया, कहा, ‘मेरा नाम जैकब है।’ ईश्वर ने कहा, ‘आज से तू इजरायल हुआ’—जिस नाम से यहूदी जाने जाते हैं—’आज से तू इजरायल। अब तू जैकब न रहा; जैकब मर गया। ‘ जैसे मैं तुम्हारा नाम बदल देता हूं जब संन्यास देता हूं। पुराना गया!
ईश्वर ने जैकब को कहा, ‘जैकब मर गया, अब से तू इजरायल है।’
यह कहानी पुरानी बाइबिल में है। ऐसी कहानी कहीं भी नहीं कि कोई आदमी ईश्वर से लड़ा हो। लेकिन इस कहानी में बड़ी सचाई है। जब वह परम—ऊर्जा उतरती है तो करीब—करीब जो घटना घटती है वह लड़ाई जैसी ही है। और जब वह परम घटना घट जाती है और तुम ईश्वर से हार जाते हो और तुम्हारा शरीर पस्त हो जाता है और तुम हार स्वीकार कर लेते हो—तो तुम्हारी परम—दीक्षा हुई! उसी घड़ी ईश्वर का आशीर्वाद बरसता है। तब तुम नये हुए। तभी तुमने पहली बार अमृत का स्वाद चखा। तो ‘योग चिन्मय’ करीब—करीब वहा हैं, जहां जैकब रहा होगा। रात कितनी बड़ी होगी, कहना कठिन है। संघर्ष कितना होगा, कहना कठिन है। कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। लेकिन शुभ है संघर्ष।
अष्टावक्र महागीता–(भाग-1) प्रवचन–8
ओशो