कौन हो भारतीय स्त्री का आदर्श
एक छोटे से मजाक से महाभारत पैदा हुआ। एक छोटे से व्यंग से, द्रौपदी के कारण जो दुर्योधन के मन में तीर की तरह चुभ गया और द्रौपदी नग्न की गई। नग्न् कि गई; हुई नहीं—यह दूसरी बात है। करने वाले ने कोई कोर-कसर न छोड़ी थी। करने वालों ने सारी ताकत लगा दी थी। लेकिन फल आया नहीं, किए हुए के अनुकूल नहीं आया फल—यह दूसरी बात है।
असल में, जो द्रौपदी को नग्न करना चाहते थे, उन्होंने ख्याल रख छोड़ा था। उनकी तरफ से कोई कोर कसर न थी। लेकिन हम सभी कर्म करने वालों को, अज्ञात भी बीच में उतर आता है। इसका कभी कोई पता नहीं है। वह जो कृष्ण की कथा है, वह अज्ञात के उतरने की कथा है। अज्ञात के हाथ है, जो हमें दिखाई नहीं पड़ते।
हम ही नहीं है इस पृथ्वी पर। मैं अकेला नहीं हूं। मेरी अकेली आकांक्षा नहीं हे। अनन्त आकांछायें है। और अनन्त की भी आंकाक्षा है। और उन सब के गणित पर अंतत: तय होता है कि क्या हुआ। अकेला दुर्योधन ही नहीं है नग्न करने में, द्रौपदी भी तो है जो नग्न की जा रही है। द्रौपदी की भी तो चेतना है, द्रौपदी का भी तो अस्तित्व है। और अन्याय होगा यह कि द्रौपदी वस्तु की तरह प्रयोग की जाए। उसके पास भी चेतना है और व्यक्तिव है, उसके पास भी संकल्प है। साधारण स्त्री नहीं है द्रौपदी।
सच तो यह है कि द्रौपदी के मुकाबले की स्त्री पूरे विश्व के इतिहास में दूसरी नहीं है। कठिन लगेगी बात। क्यों कि याद आती है सीता की, याद आती सावित्री की याद आती है सुलोचना की और बहुत यादें है। फिर भी मैं कहता हुं, द्रौपदी का कोई मुकाबला ही नहीं है। द्रौपदी बहुत ही अद्वितीय है। उसमें सीता की मिठास तो है ही, उसमें क्लियोपैट्रा का नमक भी है। उसमें क्लियोपैट्रा का सौंदर्य तो है ही, उस में गार्गी का तर्क भी है।
असल में पूरे महाभारत की धुरी द्रौपदी है।
यह सारा युद्ध उसके आस पास हुआ है।
लेकिन चूंकि पुरूष कथाएं लिखते हैं। इसलिए कथाओं में पुरूष-पात्र बहुत उभरकर दिखाई पड़ते हैं। असल में दुनिया की कोई महाकथा स्त्री की धुरी के बिना नहीं चलती है। सब महाकथाएं स्त्री की धुरी पर घटित होती है। वह बड़ी रामायण सीता की धुरी पर घटित हुई है। राम और रावण तो ट्राएंगल के दो छोर है, धुरी तो सीता है।
और वह भी बड़े मजे की बात है कि द्रौपदी को पाँच भाइयों में बांटना पडा। कहानी बड़ी सरल हे। उतनी सरल घटना नहीं हो सकती। कहानी तो इतनी ही सरल है कि अर्जुन ने आकर बाहर से कहा कि मां देखो, हम क्या ले आए है। और मां ने कहा, जो भी ले आए हो वह पांचों भाई बांट लो। लेकिन इतनी सरल घटना हो नहीं सकती। क्यों कि जब बाद में मां को भी तो पता चला होगा। कि यह मामला वस्तु का नहीं, स्त्री का है। यह कैसे बाटी जा सकती है। तो कौन सी कठिनाई थी कि कुंती कह देती कि भूल हुई। मुझे क्या् पता था कि तूम पत्नी ले आए हो।
लेकिन मैं जानता हूं कि जो संघर्ष दुर्योधन और अर्जुन के बीच होता, वह संघर्ष पाँच भाइयों के बीच भी हो सकता था। द्रौपदी ऐसी थी, वे पाँच भी कट-मर सकते थे उसके लिए। उसे बांट देना ही सुगमंतम राजनीति थी। वह घर भी कट सकता था।
वह महायुद्ध जो पीछे कौरवों-पांडवों में हुआ, वह पांडवों-पांडवों में भी हो सकता था।
इसलिए कहानी मेरे लिए इतनी सरल नहीं है। कहानी बहुत प्रतीकात्मक है और गहरी है ।
और ध्यान रहे, बहुत बातें है इसमें, जो खयाल में लेने जैसी है।
【जब तक कोई स्त्री स्वय नग्न न होना चाहे, तब तक इस जगत में कोई पुरूष किसी स्त्री को नग्न नहीं कर सकता है, न हीं कर पाता है। वस्त्र उतार भी ले, तो भी नग्न नहीं कर सकता है】
नग्न होना बड़ी घटना है वस्त्र उतरने से निर्वस्त्र होने से नग्न होना बहुत भिन्न घटना है। निर्वस्त्र करना बहुत कठिन बात नहीं है, कोई भी कर सकता है, लेकिन नग्न करना बहुत दूसरी बात है। नग्न तो कोई स्त्री तभी होती है, जब वह किसी के प्रति खुलती है स्वयं। अन्यथा नहीं होती; वह ढंकी ही रह जाती है। उसके वस्त्र छीने जा सकते है। लेकिन वस्त्र छीनना स्त्री को नग्न करना नहीं है।
तो दुर्योधन उस दिन उसे नग्न करने का जितना आयोजन करके बैठा है, वह सारा आयोजन भी हारे हुए पुरूष मन का है। और उस तरफ जो स्त्री खड़ी है हंसने वाली, वह कोई साधारण स्त्री नहीं है। उसका भी अपना संकल्प है। उसकी भी अपनी सामर्थ्य है; उसकी भी अपनी श्रद्धा है; उसका भी अपना होना है। उसकी उस श्रद्धा में वह जो कथा है, वह कथा तो काव्य है कि कृष्ण उसकी साड़ी को बढ़ाए चले जाते है। लेकिन मतलब सिर्फ इतना है कि जिसके पास अपना संकल्प है, उसे परमात्मा का सारा संकल्पत्व तत्का्ल उपलब्ध् हाँ जाता है। तो अगर परमात्मा के हाथ उसे मिल जाते हैँ, तो कोई आश्चंर्य नहीं।
तो मैंने कहा, और मैं फिर कहता हूं, द्रौपदी को नग्न करने की कोशिश की गई, लेकिन हुई नहीं। नग्न करना बहुत आसान है, उसका हो जाना बहुत और बात है। दुर्योधन ने जो चाहा, वह हुआ नहीं । कर्म का अधिकार था, फल का अधिकार नहीं था।
यह द्रौपदी बहुत अनूठी है। यह पूरा युद्ध हो गया। भीष्म पड़े है शय्या पर—बाणों की शय्या पर—और कृष्ण कहते है पांडवों को कि पूछ लो धर्म का राज, और वह द्रौपदी हँसती है। उसकी हँसी पूरे महाभारत पर छाई है। वह हंसती है कि इनसे पूछते है धर्म का रहस्य, जब मैं नग्न की जा रही थी, तब ये सिर झुकाए बैठे थे। उसका व्यंग गहरा है।
काश, हिन्दुस्तान की स्त्रियों ने सीता को आदर्श न बना कर द्रौपदी को आदर्श बनाया होता तो हिन्दुस्तान की स्त्री की शान ही कुछ और होती।
लेकिन नही, द्रौपदी खो गई है। उसका कोई पता नहीं है। खो गई। एक तो पाँच पतियों की पत्नी है। इसलिए मन को पीड़ा होती है। लेकिन एक पति की पत्नी होना भी कितना मुश्किकल है, उसका पता नहीं है। और जो पाँच पतियों को निभा सकती हे, वह साधारण स्त्री नहीं है। असाधारण है, सुपरह्मन हे। सीता भी अतिमानवीय है लेकिन टू ह्मन के अर्थों में। और द्रौपदी भी अतिमानवीय है, लेकिन सुपर ह्यूमन के अर्थों में।
पूरे भारत के इतिहास में द्रौपदी को सिर्फ एक आदमी ने ही प्रशंसा दी है। और एक ऐसे आदमी ने जो बिलकुल अनपेक्षित है। पूरे भारत के इतिहास में डाक्टर राम मनोहर लोहिया को छोड़कर किसी आदमी ने द्रौपदी को सम्मान नहीं दिया है। हैरानी की बात है मेरा तो लोहिया से प्रेम इस बात से हो गया कि पाँच हजार साल के इतिहास में एक आदमी, जो द्रौपदी को सीता के ऊपर रखने को तैयार है।