राजनीति का अर्थ होता है: दूसरों को कैसे जीत लूं? धर्म का अर्थ होता है: स्वयं को कैसे जीत लूं? इसलिये धर्म और राजनीति बड़े विपरीत हैं। धर्म फैले तो राजनीति अपने-आप सिकुड़ जायेगी और अगर धर्म न फैला तो राजनीति फैलती ही रहेगी। आदमी जीतेगा तो…जीतने की आकांक्षा आदमी के प्राणों में है। अगर अपने को नहीं जीतेगा तो दूसरों को जीतेगा।
धन्यभागी हैं वे जो स्वयं को जीतते हैं, क्योंकि स्वयं को जीतकर ही परमात्मा के मंदिर का द्वार खुलता है, शाश्वत जीवन उपलब्ध होता है। और अभागे हैं वे, जो दूसरों को ही जीतने में लगे रहते हैं क्योंकि दूसरों को तो जीत ही नहीं पाते, दूसरों को जीतने की चेष्टा में स्वयं को भी गवां बैठते हैं।
सहजयोग-18