मुल्ला नसरुद्दीन के पड़ोस में एक चर्च था। और चर्च का पादरी कभी-कभी नसरुद्दीन को शिक्षण दिया करता था। देखता था उसका जीवन, तो कभी-कभी समझाता था। एक दिन नसरुद्दीन ने उससे कहा कि आप ठीक ही कहते हैं, मैंने अब पक्का कर लिया है कि आज जाकर मैं अपनी पत्नी से क्षमा मांग लूंगा, और अब किसी स्त्री की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंगा! बहुत हो गया। और आप ठीक ही कहते थे, लेकिन मैं माना नहीं। यह मन की दौड़ थी, वासना थी, चलती रही। लेकिन अब उम्र भी हो गयी। तो आज जाकर पत्नी से क्षमा मांग लेता हूं। सब कन्फेशन कर लूंगा कि मैं उसे धोखा दे रहा हूं।
दूसरे दिन सुबह पादरी प्रतीक्षा करता रहा कि कब नसरुद्दीन घर से निकले। नसरुद्दीन बड़ी शान से, बड़ी ताजगी से जोर से कदम रखता हुआ चर्च के पास से निकला। बड़ा प्रसन्न था। तो पादरी ने कहा, “मालूम होता है, नसरुद्दीन, पत्नी ने तुम्हें क्षमा कर दिया!’
नसरुद्दीन ने कहा कि नहीं, पत्नी ने क्षमा तो नहीं किया, लेकिन अभी बात न करो। दो-चार दिन बाद!
पादरी ने कहा, लेकिन, “ऐसा क्या मामला हुआ है? प्रसन्न तुम बहुत दिखते हो?’
नसरुद्दीन ने कहा, “मैंने अपनी पत्नी को कहा कि मैं तुझे धोखा दे रहा हूं। एक दूसरी स्त्री से मेरा संबंध है। तो वह बड़ी बेचैन हो गयी और कहने लगी, उसका नाम बताओ। तो नाम बताना तो उचित नहीं था, क्योंकि उस दूसरी स्त्री की इज्जत का भी सवाल है; उसके पति का भी सवाल है; उसके बच्चों का भी सवाल है। तो मैंने कहा कि नाम तो मैं नही बता सकूंगा, माफी मांगता हूं, क्षमा कर दे। तो पत्नी नाराज हो गयी। उसने कहा कि जब तक तुम नाम नहीं बताओगे, मैं क्षमा न करूंगी। और फिर कहने लगी, अच्छा, अगर तुम नहीं बताते तो मैं खुद ही खयाल कर लेती हूं। तुम पादरी की पत्नी के प्रेम में तो नहीं हो? और जब मैं चुप रहा तो उसने कहा कि नहीं-नहीं, पादरी की बहन! और जब मैं फिर भी चुप रहा तो उसने कहा कि नहीं-नहीं, अब तो पक्का है कि तुम पादरी की लड़की से!
मैं चुप ही रहा।
तो पादरी ने कहा, “लेकिन इससे तुम इतने प्रसन्न क्यों हो?’
तो नसरुद्दीन ने कहा कि और तो कुछ हल न हुआ, बट शी हैज गिवन मी थ्री न्यू कान्टैक्ट्स। और अभी अब बीच में पड़ो मत!
मन फिर गतिमान हो गया। अब तीन नये पते उसने और बता दिये। इन तीन स्त्रियों का खयाल ही नहीं था नसरुद्दीन को।
महावीर वाणी, भाग-२,
ओशो