मोहम्मद ने इस्लाम में मूर्ति पूजा क्यों प्रतिबंधित की
जीसस का चिह्न क्रास है, वह काम करेगा। जैसे मोहम्मद ने इनकार किया कि मेरी मूर्ति मत बनाना। मेरी मूर्ति मत बनाना! असल में, मोहम्मद के वक्त तक इतनी मूर्तियां बन गई थीं कि मोहम्मद एक बिलकुल ही दूसरा प्रतीक देकर जा रहे थे अपने मित्रों को कि मेरी मूर्ति मत बनाना, मैं बिना ही मूर्ति के, अमूर्ति में तुमसे संबंध बना लूंगा। तुम मेरी मूर्ति बनाना ही मत; तुम मेरा चित्र ही मत बनाना; मैं तुमसे बिना चित्र, बिना मूर्ति के संबंधित हो जाऊंगा। यह भी एक गहरा प्रयोग था, और बड़ा हिम्मतवर प्रयोग था, बहुत हिम्मतवर प्रयोग था। लेकिन साधारणजन को बड़ी कठिनाई पड़ी मोहम्मद से संबंध बनाने में।
इसलिए मोहम्मद के बाद हजारों फकीरों की कब्रें और मकबरे और समाधियां उन्होंने बना ली। क्योंकि मोहम्मद से संबंध बनाने का तो उनकी समझ में नहीं आया कि कैसे बनाएं। तब फिर उन्होंने कोई और आदमी की कब्र बनाकर उससे संबंध बनाया फिर मकबरे बनाए। और जितनी मकबरों और कब्रों की पूजा मुसलमानों में चली, उतनी दुनिया में किसी में नहीं चली। उसका कुल कारण इतना था कि मोहम्मद की कोई पकड़ नहीं थी उनके पास जिससे वे सीधे संबंधित हो जाते, कोई रूप नहीं बना पाते थे। तो उनको दूसरा रूप तत्काल बनाना पड़ा। और उस दूसरे रूप से उन्होंने संबंध जोड़ने शुरू किए।
यह सारी की सारी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। अगर विज्ञान की तरह उसे समझा जाए तो उसके अदभुत फायदे हैं; और अंधविश्वास की तरह उसे समझा जाए तो बहुत आत्मघाती है।
ओशो
जिन खोजा तिन पाइयां, प्रवचन