शब्द और अर्थ

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मुल्ला नसरुद्दीन एक ट्रेन में सफर कर रहा था। एक बड़े प्रसिद्ध कवि भी साथ में सफर कर रहे थे। कवि थे तो ट्रेन में बैठ—बैठे भी कविताएं लिख रहे थे।

मुल्ला ने उन से पूछा: कोई किताब पत्रिका वगैरह है आपके पास? खाली बैठा हूं, कुछ पढूं।
कवि जी ने फौरन पास में रखी हुए एक किताब देते हुए कहा। यह पढ़िए, मेरी कविताओं का संकलन है। मुल्ला नसरुद्दीन बोला। धन्यवाद, उसे तो आप अपने पास रखिए। वैसे पढ़ने के लिए तो मेरे पास टाइम—टेबिल भी है।
एक तो आदमियों में हैं कवि, जो वही—वही दोहराए जाते हैं। इधर उधर थोड़ा बहुत भेद, फर्क, शब्दों का जमाव, तुकबंदी…बस तुकबंदी है।
राजस्थान की पुरानी कहानी है। एक जाट सिर पर खाट लेकर जा रहा था। गांव का कवि मिल गया, उस ने कहा: जाट रे जाट, सिर पर तेरे खाट!
जाट भी कोई ऐसा रह जाए पीछे…जाट और पीछे रहे जाए! उस ने कहा: कवि रे कवि, तेरी ऐसी की तैसी!
कवि ने कहा: तुकबंदी नहीं बैठती, काफिया नहीं बैठता।
जाट ने कहा: काफिया बैठे कि न बैठे, जो मुझे कहना था सो मैंने कह दिया। काफिया बिठा कौन रहा है, तू बिठाता रह काफिया!
एक तो तुकबंद हैं, जा जाट के साथ खाट का काफिया बिठा रहे हैं। परमात्मा कोई तुकबंद नहीं है। अनंत है परमात्मा। अनंत हैं उसकी अभिव्यक्तियां—हर बार नई।
जब भी तुम उधार ज्ञान इकट्ठा कर लेते हो तब तुम बासा ज्ञान इकट्ठा कर लेते हो। तुम्हारा परमात्मा पर भरोसा नहीं है, इसलिए तुम वेद पर भरोसा करते हो। तुम्हारा परमात्मा पर भरोसा नहीं है, इसलिए तुम कुरान को छाती से लगाए बैठे हो। काश, तुम्हारा परमात्मा पर भरोसा हो तो तुम कुरान भी छोड़ो, वेद भी छोड़ो, बाइबिल भी छोड़ो; तुम कहो परमात्मा से कि मैं राजी हूं, मुझ पर भी उतर! मेरे द्वार खुले हैं। मेरे भीतर भी आ। मुझ में भी गुनगुना। मेरा कसूर क्या है? मुझे भी छू। मेरी मिट्टी को भी सोना बना। मुझे भी सुगंध दे। आखिर मुझ से नाराजी क्या है?
जिसका परमात्मा पर भरोसा है, वही ध्यान कर सकता है।

ध्यान का अर्थ भूल मत जाना—जागरूकता, साक्षी भाव और तुम कितना ही शास्त्र पढ़ो, तुम समझोगे वही जो तुम समझ सकते हो। अन्यथा हो भी कैसे सकता है? तुम वेद भी पढ़ोगे तो तुम वही थोड़े ही पढ़ लोगे जो वेद के ऋषि ने लिखा था। वेद के ऋषि ने जो लिखा है उसे समझने को, उस ऋचा को समझने को, उस ऋषि की बोध—दशा चाहिए पड़ेगी। बिना उस ऋषि की बोध—दशा के तुम कैसे समझोगे अर्थ?
अर्थ शब्दों में नहीं होता, अर्थ देखनेवाले की आंखों में होता है। अर्थ शब्द में छिपा नहीं है कि तुम ने शब्द को समझ लिया तो अर्थ समझ में आ जाएगा। शब्द तो केवल निमित्त है, खूंटी है। टांगना तो तुम्हें अपना ही कोट पड़ेगा। तुम जो टांगोगे, वही खूंटी पर टंग जाएगा। वेद को जब बुद्धू पढ़ेगा तो वेद भी उस के साथ बुद्धू हो जाते हैं।