मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन सुनने गया था एक शास्त्रीय संगीतज्ञ को। जब वह आलाप भरने लगा, तो उसकी आंख से आंसू गिरने लगे। वह एकदम बहुत विह्वल होकर रोने लगा। पड़ोसी ने कहा उसे कि क्या हुआ नसरुद्दीन? हमने कभी सोचा भी न था कि तुम शास्त्रीय संगीत के इतने बड़े प्रेमी हो। तुम्हारी आंख से आंसू बह रहे हैं!
नसरुद्दीन ने कहा कि मैं तुम्हें बताता हूं भाईजान, यही बीमारी मेरे बकरे को भी हो गयी थी। बस, ऐसे ही आsss आsss.. आऽsss….. करते—करते मेरा बकरा भी मरा था। यह आदमी मरेगा।
शास्त्रीय संगीत से मुझे कुछ लेना—देना नहीं, मगर यह आदमी बीमार है।
गीता दर्शन
ओशो