सत्य जब भी अवतरित होता है, तब व्यक्ति के प्राणो पर अवतरित होता है । सत्य भीड के उपर अवतरित नही होता । सत्य को पकडने के लिए व्यक्ति का प्राण ही वीणा बनता है ।
वही से झंकृत होता है सत्य । भीड के पास कोई सत्य नही है । भीड के पास उधार बाते है जो कि असत्य हो गयी है ।
भीड के पास किताबे है जो कि मर चुकी है । भीड के पास महात्माओ, तीर्थंकरो, अवतारो के नाम है, जो सिर्फ नाम है, जिनके पीछे अब कुछ भी नही बचा, सब राख हो गया है ।
भीड के पास परम्पराए है, भीड के पास याददाश्ते है, भीड के पास हजारो लाखो साल की आदते है ।
लेकिन भीड के पास वह चित्त नही है, जो मुक्त होकर सत्य को जान लेता है । जब भी कोई उस चित्त को उपलब्ध करता है, तो अकेले मे, व्यक्ति की तरह उस चित्त को उपलब्ध करना पडता है ।
ओशो