सेल टैक्स आफिसर ने खाते का आखिरी पन्ना खोला जिस पर लिखा था— दो हजार रुपये के बिस्कुट कुत्ते को खिलाए। उस आफिसर ने आश्चर्य से पूछा: क्यों जी चंदूलाल, यह क्या माजरा है? हमें धोखा देना चाहते हो? सेल टैक्स बचाने की तुमने अच्छी तरकीब निकाली! मगर इतना तो सोच लेते महाशय कि इस बात पर कोई भरोसा करेगा कि तुमने दो हजार रुपये के बिस्कुट कुत्ते को खिलाए? तुमने, और दो हजार के बिस्कुट, और कुत्ते को! बोलो तुम्हें ऐसा सफेद झूठ बोलते हुए शर्म न आई?
शर्म तो आई हुजूर, मगर क्या करूं— चंदूलाल ने अपनी चांद पर हाथ फेरते हुए कहा— यदि मैं आपका शुभ नाम लिखता तो वह और भी ज्यादा लज्जाजनक बात होती।
मन ही पूजा मन ही धूप
(संत रैदास-वाणी), प्रवचन-९,
ओशो