सस्ता महंगा

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एक गांव में मेला लगा। दो छोटे बच्चे शरबत बेच रहे हैं। दोनों जुड़वां भाई लगते हैं। एक एक आना गिलास बेच रहा है और दूसरा दो पैसे गिलास, और शरबत एक जैसा। स्वभावत:, दो पैसे गिलास वाले की बिक्री खूब हो रही है, डट कर हो रही है, भीड़ वहीं लगी हुई है। आखिर एक आदमी ने पूछा, जो एक आना गिलास बेच रहा था, कि बात क्या है! तुम दोनों जुड़वां भाई हो; यह शरबत भी एक जैसा है, तुम्हारी दुकान पर भीड़ बिलकुल नहीं, उस दुकान पर इतनी भीड़ लगी है। तुम एक आना गिलास क्यों बेच रहे हो, वह दो पैसा गिलास क्यों बेच रहा है?

उसने कहा, अब आपसे क्या बताना, उसके शरबत में रात एक चूहा गिर गया था, सो वह सस्ता बेच रहा है। अब उसका शरबत किसी काम का नहीं है। मेरा शरबत तो हम घर में भी पी लेंगे।

मन ही पूजा मन ही धूप

संत रैदास-वाणी, प्रवचन-४,

ओशो