हिटलर अपने कन्धे पर हाथ किसी को भी नहीं छुआ सकता है. इसीलिए शादी भी नहीं की. कम से कम पत्नी को तो छुआना ही पड़ेगा. शादी से डरता रहा कि शादी की, तो पत्नी तो कम से कम कमरे में सोएगी. लेकिन भरोसा क्या है कि पत्नी रात में गरदन न दबा दे! हिटलर दिखता होगा बहुत बहादुर आदमी!
ये बहादुर आदमी सब दिखते हैं. ये सब बहादुरी बिलकुल ऊपरी है, भीतर बहुत डरे हुए आदमी हैं.
हिटलर किसी से ज़्यादा दोस्ती नहीं करता था. क्योंकि दोस्त के कारण, जो सुरक्षा है, जो व्यवस्था है, वो टूट जाती है. दोस्तों के पास बीच के फ़ासले टूट जाते हैं. हिटलर के कन्धे पर कोई हाथ नहीं रख सकता था. हिमलर या गोयबल्स भी नहीं. कन्धे पर हाथ कोई भी नहीं रख सकता है. एक फ़ासला चाहिए, एक दूरी चाहिए. कन्धे पर हाथ रखने वाला आदमी ख़तरनाक हो सकता है. गरदन पास ही है, कन्धे से बहुत दूर नहीं है.
एक औरत हिटलर को बहुत प्रेम करती रही. लेकिन भयभीत लोग कहीं प्रेम कर सकते हैं? हिटलर उसे टालता रहा, टालता रहा, टालता रहा. आप जानकर हैरान होंगे, मरने के दो दिन पहले, जब मौत पक्की हो गई, जब बर्लिन पर बम गिरने लगे, तो हिटलर जिस तलघर में छिपा हुआ था, उसके सामने दुश्मन की गोलियाँ गिरने लगीं, और दुश्मन के पैरों की आवाज़ बाहर सुनाई देने लगी, द्वार पर युद्ध होने लगा, और जब हिटलर को पक्का हो गया कि मौत निश्चित है, अब मरने से बचने का कोई उपाय नहीं है, तो उसने पहला काम ये किया कि एक मित्र को भेजा और कहा कि, “जाओ, आधी रात को उस औरत को ले आओ. कहीं कोई पादरी सोया-जगा मिल जाए, उसे उठा लाओ, शादी कर लूँ.” मित्रों ने कहा, “ये कोई समय है शादी करने का?” हिटलर ने कहा, “अब कोई भय नहीं है, अब कोई भी मेरे निकट हो सकता है, अब मौत बहुत निकट है. अब मौत ही क़रीब आ गई है, तब किसी को भी निकट लिया जा सकता है.”
दो घण्टे पहले हिटलर ने शादी की तलघर में! सिर्फ़ मरने के दो घण्टे पहले!
तो पुरोहित और सेक्रेटरी को बुलाया था. उनकी समझ के बाहर हो गया कि, “ये शादी किसलिए हो रही है? इसका प्रयोजन क्या है? हिटलर होश में नहीं है.” पुरोहित ने किसी तरह शादी करवा दी है. और दो घण्टे बाद उन्होंने ज़हर खाकर सुहागरात मना ली है और गोली मार ली है, दोनों ने! ये आदमी मरते वक़्त तक विवाह भी नहीं कर सका, क्योंकि दूसरे आदमी का साथ रहना, पास लेना ख़तरनाक हो सकता है.
दुनिया के जिन बड़े बहादुरों की कहानियाँ हम इतिहास में पढ़ते हैं, बड़ी झूठी हैं. अगर दुनिया के बहादुरों के भीतरी मन में उतरा जा सके तो वहाँ भयभीत आदमी मिलेगा.
ओशो
(संभोग से समाधि की ओर)