एक रात जोर से शराबघर के मालिक की टेलीफोन की घंटी बजने लगी–दो बजे रात, गुस्से में परेशान, नींद टूट गयी। घंटी उठायी, फोन उठाया। पूछा, कौन है? उसने कहा, मुल्ला नसरुद्दीन। क्या चाहते हो दो बजे रात? उसने कहा, मैं यही पूछना चाहता हूं कि शराब घर खुलेगा कब? व्हेन डू यू ओपन। उसने कहा, यह भी कोई बात है, तू रोज का ग्राहक। दस बजे सुबह खुलता है, यह भी दो बजे रात फोन करके पूछने की कोई जरुरत है? वह गुस्से में फोन पटककर फिर सो गया।
चार बजे फिर फोन की घंटी बजी। उठाया। कौन है? उसने कहा, मुल्ला नसरुद्दीन। कब तक खोलोगे दरवाजे? मालिक ने कहा, मालूम होता है तू ज्यादा पी गया है या पागल हो गया है। अभी चार ही बजे हैं, दस बजे खुलनेवाला है।अगर तू दस बजे आया भी तो तुझे घुसने नहीं दूंगा। आई विल नाट अलाउ यू इन। मुल्ला ने कहा, हू वांट्स टु कम इन। आइ वांट टु गो आउट। मैं तो भीतर बंद हूं। और खोलो जल्दी, नहीं तो मैं पीता चला जा रहा हूं। अभी तो मुझे पता चल रहा है कि बाहर भीतर में फर्क है।
थोड़ी देर में वह भी पता नहीं चलेगा। अभी तो मुझे फोन नंबर याद है। थोड़ी देर में वह भी नहीं रहेगा। अभी तो मैं बता सकता हूं, मैं मुल्ला नसरुद्दीन हूं। थोड़ी देर में वह भी नहीं बता सकूंगा। जल्दी खोलो।
महावीर वाणी, भाग-१, प्रवचन#१४,
ओशो