क्या हर चीज़ के लिए परमात्मा जिम्मेदार है?

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साधारण आदमीजब उसके जीवन में दुख आता है, तब शिकायत करता है। सुख आता है तब धन्यवाद नहीं देता। जब दुख आता है, तब वह कहता है किकहीं कुछ भूल हो रही है। परमात्मा नाराज है। भाग्य विपरीत है।और जब सुख आता है, तब वह कहता है कियह मेरी विजय है।

मुल्ला नसरुद्दीन एक प्रदर्शनी में गयाअपने विद्यार्थियों को साथ लेकर। उस प्रदर्शनी में एक जुए का खेल चल रहा था। लोग तीर चला रहे थे धनुष से और एक निशाने पर चोट मार रहे थे। निशाने पर चोट लग जाये तो जितना दांव पर लगाते थे, उससे दस गुना उन्हें मिल जाता था। निशाने पर चोट लगे, तो जो उन्होंने दांव पर लगाया, वह खो जाता।
नसरुद्दीन अपने विद्यार्थियों के साथ पहुँचा; उसने अपनी टोपी सम्हाली; धनुष बाण उठाया; दांव लगाया और पहला तीर छोड़ा तीर पहुंचा ही नहींनिशान तक। लगने की बात दूर, वह कोई दसपंद्रह फीट पहले गिर गया। लोग हंसने लगे। नसरुद्दीन ने अपने विद्यार्थियों से कहा, ‘‘इन नासमझों की हंसी की फिक्र मत करो। अब तुम्हें समझाता हूं कि तीर क्यों गिरा।लोग भी चौंककर खड़ेहो गये। वह जो जुआ खिलाने वाला था, वह भी चौंककर रह गया। बात ही भूल गया। नसरुद्दीन ने कहा, ‘‘देखो, यह उस, सिपाही का तीर है, जिसको आत्मा पर भरोसा नहींजिसको आत्मविश्वास नहीं। वह पहुंचता ही नहीं हैलक्ष्य तक; पहले ही गिर जाता है।अब तुम दूसरा तीर देखो।

सभी लोग उत्सुक हो गये। उसने दूसरी तीर प्रत्यंचा पर रखा और तेजी से चलाया। वह तीर निशान से बहुत आगे गया। इस बार लोग हंसे नहीं। नसरुद्दीन ने कहा, ‘देखो, यह उस आदमी का तीर है, जो जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा हुआ है।और तब उसने तीसरा तीर उठाया और संयोग की बात कि वह जाकर निशान से लग गया। नसरुद्दीन ने जाकर अपना दांव उठाया और कहा, ‘दस गुने रुपये दो।भीड़ में थोड़ी फुसुसाहट हुई और लोगों ने पूछा, ‘‘और यह किसका तीर है ?’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘‘यह मेरा तीरहै। पहला तीर उस सिपाही का था, जिसको आत्मविश्वास नहीं है। दूसरा, उस सिपाही का था, जिसको ज्यादा आत्मविश्वास है।और तीसराजो लग गया, वह मेरा तीर है।

यही साधारण मनो दशा है। जब तीर लग जाये, तो तुम्हारा; चूक जाये, तो कोई और जिम्मेवार है। और जब तुम किसी को जिम्मेवार खोज सको, तो परमात्मा जिम्मेवार है ! जब तक तुम दृश्य जगत में किसी को जिम्मेदार खोज लेते हो, तब तक अपने दुख उस पर डाल देते हो। अगर दृश्य जगत में तुम्हें कोई जिम्मेवार दिखाई पड़े तब भी तुम जिम्मेवारी अपने कंधे पर तो नहीं ले सकते; तब परमात्मा तुम्हारे काम आता है। वह तुम्हारे बोझ को अपने कंधे पर ढोता है।
तुमने परमात्मा को अपने दुखों से ढांक दिया है। अगर वह दिखाई नहीं पड़ता है, तो हो सकता है, सबने मिलकर इतने दुख उस पर ढांक दिये हैं कि वह ढंक गया है; और उसे खोजना मुश्किल है।