बोधिधर्म की कहानी

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आज से चौदह सौ साल पहले बोधिधर्म भारत से चीन गए थे। उन्होंने अपना एक जूता अपने सिर पर रखा हुआ था—एक जूता पांव में था और दूसरा सिर पर। चीन का सम्राट बू उसके स्वागत के लिए आया हुआ था। यह देखकर वह परेशान हो उठा। अफवाहें तो बहुत सुनी थीं कि यह आदमी अजीबोगरीब है, लेकिन वह बुद्धपुरुष था और सम्राट अपने राज्य में उसका स्वागत करना चाहता था। वह परेशान हो गया। उसके दरबारी भी परेशान हो गए। वे सोचने लगे कि यह किस तरह का व्यक्ति है! और बोधिधर्म हंस रहा था।

दूसरों के सामने कुछ कहना अशोभन होता, इसलिए सम्राट चुप रहा। जब सभी लोग चले गए और बोधिधर्म और सम्राट बोधिधर्म के कमरे में गए तो सम्राट ने पूछा कि आप अपने को इस तरह मूर्ख क्यों बना रहे हैं? आप अपना एक जूता सिर पर क्यों रखे हुए हैं?

बोधिधर्म हंसा और बोला : क्योंकि मैं अपने ऊपर हंस सकता हूं। और यह अच्छा है कि आप मेरी असलियत को जान लें कि मैं ऐसा व्यक्ति हूं। और मैं अपने सिर को पांव से ज्यादा मूल्य नहीं देता हूं मेरे लिए दोनों समान हैं। मेरे लिए ऊंच—नीच विलीन हो गए हैं। और दूसरी बात मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि मैं इस बात की जरा भी परवाह नहीं करता कि दूसरे मेरे बारे में क्या कहते हैं। और यह अच्छा है, जिस क्षण मैंने आपके राज्य में प्रवेश किया, मैंने चाहा कि आप जान लें कि मैं किस तरह का आदमी हूं।

यह बोधिधर्म एक दुर्लभ रत्‍न है। बहुत कम लोग हुए हैं जो उनकी तुलना में आ सकें। वे क्या बता रहे थे? वे यही बता रहे थे कि अध्यात्म के इस मार्ग पर तुम्हें व्यक्ति की तरह अकेले चलना है, समाज यहां अप्रासंगिक हो जाता है।

कोई व्यक्ति जार्ज गुरजिएफ के साक्षात्कार के लिए आया था। आने वाला एक बड़ा पत्रकार था। गुरजिएफ के शिष्य बहुत उत्सुक थे कि अब एक बड़े समाचारपत्र में उनके गुरु की कहानी, उसके चित्र और समाचार छपने जा रहे हैं। उन्होंने उस पत्रकार का बहुत खयाल रखा, उसकी अच्छी तरह देखभाल की। वे अपने गुरु को करीब—करीब भूल ही गए और पत्रकार के आस—पास मंडराते रहे।

और फिर साक्षात्कार शुरू हुआ, लेकिन दरअसल वह साक्षात्कार कभी शुरू ही नहीं हुआ। जब पत्रकार ने कोई प्रश्न पूछा तो गुरजिएफ ने कहा एक मिनट रुको। उसके बगल में ही एक स्त्री बैठी थी; गुरजिएफ ने उससे पूछा कि आज कौन सा दिन है? उस स्त्री ने कहा कि आज रविवार है। गुरजिएफ ने कहा. यह कैसे हो सकता है? कल तो शनिवार था, तो आज रविवार कैसे हो सकता है? कल तो तुमने कहा था कि आज शनिवार है, शनिवार के बाद रविवार कैसे आ सकता है?

पत्रकार उठ खड़ा हुआ और उसने कहा कि मैं जाता हूं यह आदमी तो पागल मालूम पड़ता है। सभी शिष्य हैरान थे, जो कुछ घटित हुआ, उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। जब पत्रकार चला गया तो गुरजिएफ हंस रहा था।दूसरे क्या कहते हैं यह प्रासंगिक नहीं है। तुम स्वयं जो अनुभव करते हो, उसके प्रति प्रामाणिक बनो, लेकिन प्रामाणिक बनो। अगर तुम्हें सच्चा मौन घटित हुआ हो तो तुम हंस सकते हो।

डोजेन एक झेन गुरु था। उसके संबंध में कहा जाता है कि जब वह बुद्धत्व को उपलब्ध हुआ तो अनेक लोगों ने पूछा कि उसके बाद आपने क्या किया? डोजेन ने कहा कि मैंने एक प्‍याली चाय बुलायी। अब और करने को क्‍या था; सब तो समाप्‍त हो चुका था। और डोजेन अपनी गैर—गंभीरता के प्रति गंभीर था और अपनी गंभीरता के प्रति गैर—गंभीर था। सच ही तब क्या बच रहता है?

ज्यादा मत ध्यान दो कि दूसरे क्या कहते हैं। और एक बात स्मरण में रख लो कि मौन को ऊपर से थोपो मत, उसका अभ्यास मत करो। अभ्यासजन्य मौन गंभीर होगा, रुग्ण होगा, तनावग्रस्त होगा। लेकिन सच्चा मौन कैसे आता है? इसे समझने की कोशिश करो।

तुम तनावग्रस्त हो, तुम दुखी हो, तुम उदास हो। तुम क्रोधी, लोभी, हिंसक हो। हजार रोग हैं। और तुम शांति का अभ्यास कर सकते हो। ये रोग तुम्हारे भीतर बने रह सकते हैं और तुम शांति की एक पर्त निर्मित कर सकते हो। तुम टी .एम या भावातीत ध्यान कर सकते हो, या किसी मंत्र का जाप कर सकते हो। मंत्र तुम्हारी हिंसा को नहीं बदलने वाला है, न वह तुम्हारे लोभ को बदलने वाला है। मंत्र गहरे में बसी किसी वृत्ति को नहीं बदल सकता है। मंत्र सिर्फ ट्रैंक्वेलाइजर का काम करता है, बस ऊपर—ऊपर तुम थोड़ा शांत अनुभव करोगे। यह केवल ट्रैंक्वेलाइजर है—ध्वनि निर्मित ट्रैंक्वेलाइजर।

ओशो

तंत्र सूत्र (भाग-3), प्रवचन : 38