अष्टावक्र के संबंध में कुछ बातें समझ लेनी जरूरी हैं। ज्यादा पता नहीं है, क्योंकि न तो वे सामाजिक पुरुष थे, न राजनीतिक, तो इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है। बस थोड़ी सी घटनाएं ज्ञात हैं–वे भी बड़ी अजीब, भरोसा करने योग्य नहीं; लेकिन समझोगे तो बड़े गहरे अर्थ खुलेंगे।
अष्टावक्र पैदा हुए उसके पहले की; पीछे का तो कुछ पता नहीं है–गर्भ की घटना। पिता–बड़े पंडित। अष्टावक्र–मां के गर्भ में। पिता रोज वेद का पाठ करते हैं और अष्टावक्र गर्भ में सुनते हैं। एक दिन अचानक गर्भ से आवाज आती है रुको भी। यह सब बकवास है। ज्ञान इसमें कुछ भी नहीं–बस शब्दों का संग्रह है। शास्त्र में ज्ञान कहां ? ज्ञान स्वयं में है। शब्द में सत्य कहां ? सत्य स्वयं में है।
पिता स्वभावतः नाराज हुए। एक तो पिता, फिर पंडित ! और गर्भ में छिपा हुआ बेटा इस तरह की बात कहे ! अभी पैदा भी नहीं हुआ ! क्रोध में आ गए, आगबबूला हो गए। पिता का अहंकार चोट खा गया। फिर पंडित का अहंकार ! बड़े पंडित थे, बड़े विवादी थे, शास्त्रार्थी थे। क्रोध में अभिशाप दे दिया कि जब पैदा होगा तो आठ अंगों से टेढ़ा होगा। इसलिए नाम–अष्टावक्र। आठ जगह से कबड़े पैदा हुए। आठ जगह से ऊँट की भांति इरछे-तिरछे ! पिता ने क्रोध में शरीर को विक्षत कर दिया।
अष्टावक्र महागीता भाग-1