आदतें

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सिगरेट पीना अस्वास्थ्यकर है, खराब है, लेकिन पाप नहीं है। यह पाप है अगर तुम इसे बेहोशी से कर रहे हो। सिगरेट पीना इसे पाप नहीं बनाता बल्कि बेहोशी इसे पाप बनाती है। मुझे इस तथ्य पर जोर देने दो। तुम अपनी प्रार्थना रोज बेहोशी में कर सकते हो; तब तुम्हारी प्रार्थना पाप है। तुम अपनी प्रार्थना को एक लत बना सकते हो। अगर तुम एक दिन प्रार्थना ना करो, पूरे दिन तुम्हें कुछ बुरा अनुभव होगा, कुछ खो गया है…कुछ खालीपन। ऐसा ही है सिगरेट पीना या शराब पीना; इनमें कुछ फर्क नहीं है।

तुम्हारी प्रार्थना एक यांत्रिक आदत बन गई है; यह तुम्हारी मालिक हो गयी है। यह तुम्हारे ऊपर मालकियत करती है; तुम बस एक नौकर हो, इसके एक गुलाम। यदि तुम इसे नहीं करते तो, यह तुम्हें इसे करने के लिये बाध्य करती है। तो सवाल सिगरेट पीने का नहीं है। तुम अपना भावातीत ध्यान प्रतिदिन नियमित रूप से कर सकते हो, और वह एक जैसा हो सकता है। अगर उसमें बेहोशी की अवस्था है, अगर यांत्रिकता है, अगर यह एक निश्चित दिनचर्या बन गया है, अगर यह एक आदत बन गई है और तुम आदत के शिकार हो और तुम इसे अलग नहीं कर सकते हैं, तुम अपने मालिक नहीं हो, तब यह पाप है। लेकिन इसका पाप होना तुम्हारी बेहोशी से आता है, ना कि इस कृत्य से। कोई कृत्य पुण्य नहीं है, कोई कृत्य पाप नहीं है। सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि कृत्य के पीछे कैसी चेतना है।

तुम कहते हो: मैं सिगरेट पीने की आदत नहीं छोड़ सकता। तुम्हारी सिगरेट पीने की आदत में मेरी ज्यादा रुचि नहीं है: मेरी ज्यादा रुचि तुम्हारी आदत में है। कोई भी आदत जो एक ताकत बन जाती है, तुम्हें दबानेवाली ताकत, पाप है। व्यक्ति को चाहिए कि वह स्वतंत्र रहे। आदत के अनुसार नहीं बल्कि स्थिति के अनुसार काम करना चाहिए। जीवन प्रतिपल बदल रहा है, यह एक प्रवाह है और आदतें स्थिर हैं। जितना अधिक तुम आदतों से घिरे हो, उतना ही तुम जीवन के प्रति बन्द हो जाते हो। तुम खुले नहीं हो, तुम्हारे अंदर खिड़कियां नहीं हैं। तुम्हारा जीवन से कोई संवाद नहीं है; तुम अपनी आदतों को दोहराए चले जाते हो। उनका मेल नहीं है। वे स्थिति के अनुसार, उस क्षण में उपयुक्त नहीं हैं। वे हमेशा पीछे रहती हैं, वे हमेशा अधूरी पड़ती हैं। यही तुम्हारे जीवन की हार है।

स्मरण रहे: मैं हर तरह की आदत के खिलाफ़ हूं। अच्छी और बुरी आदत का सवाल नहीं है। अच्छी आदत जैसा कुछ नहीं है, बुरी आदत जैसा कुछ नहीं है। सब आदतें बुरी हैं क्योंकि आदत का मतलब है कि कुछ बेहोशी तुम्हारे जीवन पर हावी हो गयी है, निर्णायक बन गई है। अब तुम निर्णायक नहीं हो। जागरूकता से जवाब नहीं आ रहा है बल्कि एक ढांचे, नक्शे से जिसे तुमने अतीत से सीखा है।

अगर तुम वास्तव में अपनी ज़िंदगी के बारे में कुछ करना चाहते हो, सिगरेट छोड़ने से कोई मदद नहीं मिलेगी क्योंकि मैं उन लोगों को जानता हूं जिन्होंने सिगरेट छोड़ी; वे चुइंगम खाना शुरु कर देते हैं। वही पुरानी बेवकूफी! और अगर वे भारतीय हैं तो वे पान खाना शुरु कर देते हैं, बात वही है। तुम कुछ ना कुछ करोगे। तुम्हारी बेहोशी कोई काम चाहेगी, कुछ व्यस्तता। यह एक व्यस्तता है। और यह केवल एक लक्षण है; यह वास्तव में समस्या नहीं है। यह समस्या की जड़ नहीं है। क्या तुमने निरीक्षण नहीं किया? जब भी तुम भावनात्मक रूप से परेशान होते हो तुम तुरन्त सिगरेट पीना शुरु कर देते हो। यह तुम्हें एक तरह की राहत देता है; तुम व्यस्त हो जाते हो। तुम्हारा मन भावनात्मक रूप से विचलित है। जब भी लोग तनाव में होते हैं, वे सिगरेट पीना शुरु कर देते हैं। तनाव समस्या है, समस्या भावनात्मक परेशानी है, समस्या कहीं और है; सिगरेट पीना बस एक व्यस्तता है। तुम धुआं अन्दर लेने और बाहर छोड़ने में व्यस्त हो जाते हो और तुम कुछ समय के लिये भूल जाते हो…क्योंकि मन दो चीजों को एक साथ नहीं सोच सकता, याद रखो।

मन की एक बुनियादी बात यह है कि वह एक बार में एक चीज ही के बारे में सोच सकता है; यह एक-आयामी है। अगर तुम सिगरेट पी रहे हो और और इसी के बारे में सोच रहे हो, तो तुम और चिन्ताओं से अलग हो जाते हो। यही सारा रहस्य है तुम जरूर अपने अन्दर हजारों बाधाओं को लेकर बहुत चिंतित हो, तुम अवश्य ही अपने हृदय में अपनी छाती पर चिंताओं का भारी बोझ लिए हो, कि तुम नहीं जानते उन्हें कैसे भूला जाए। तुम नहीं जानते कि उन्हें कैसे छोड़ा जाए; सिगरेट पीना कम से कम उन्हें भूलने में तुम्हारी मदद करता है।

विश्रांत, शांत, मौन बनो। मेरी सलाह है: जितना हो सके उतनी सिगरेट पिओ।

पहली तो बात कि यह पाप नहीं है। मैं तुम्हें आश्वासन देता हूं। मैं जिम्मेदार रहूंगा। मैं पाप अपने ऊपर लेता हूं, अगर तुम्हें निर्णय के दिन भगवान मिलें तो कहना यह आदमी जिम्मेवार है। और मैं वहां गवाह के रुप में खड़ा रहूंगा कि तुम जिम्मेवार नहीं हो। तो यह चिंता मत करो कि वह पाप है। विश्रांत रहो औ इसे प्रयत्न पूर्वक छोड़ने की कोशिश मत करो। नहीं, यह मदद नहीं करेगा। जितना चाहो उतनी सिगरेट पिओ, बस इसे ध्यानपूर्वक पिओ।

ओशो