ओशो का अनोखा अन्दाज

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लुंगी पहनकर और शाल ओढ़कर यूनिवर्सिटी में

जब रजनीश लुंगी पहनकर ही नोट बुक झुलाता छात्रावास से यूनिवर्सिटी के लिये रवाना हुआ, सभी छात्र उसे आश्चर्य से देखते रह गये! एक ने टोंका भी- “भाई साहब! यह लुंगी छात्रावास में तो ठीक है, पर क्या आप इसे पहनकर सचमुच यूनिवर्सिटी जा रहे हैं?”

रजनीश ने उत्तर दिया- “कोई भी वस्त्र पहनना या न पहनना व्यक्ति की स्वतंत्रता है! आप चाहें तो आप भी लुंगी पहन सकते हैं! लुंगी पहनने में बहुत सुविधापूर्ण और आनंददायक है!

और सचमुच रजनीश जब पहली बार खड़ाऊं खटखटाते, एक गाउन और लुंगी पहनकर यूनिवर्सिटी में प्रविष्ट हुआ, सभी छात्र व प्रोफेसर उसे आश्चर्य से देखते रह गये! लुंगी पहने हुये यूनिवर्सिटी में शायद कोई पहली बार प्रविष्ट हुआ था! कानाफूसियां प्रारम्भ हो गई! धीमे-धीमे बात पूरी यूनिवर्सिटी में फैल गई! छात्र और प्रोफेसर्स क्लास रूम से निकलकर यह तमाशा देखने बाहर आ गये! पहले बिना बटन का कुर्ता और खड़ाऊं ही आश्चर्य के लिये कम नहीं थे और आज यह लुंगी!

छात्रों के लिये यह कौतुल अधिक था! वह मुस्कुराते, हंसते, हाथ हिला-हिलाकर रजनीश का स्वागत करने लगे! उनकी प्रसन्नता केवल इसी बात में थी कि अनुशासन टूटे! वाइस चांसलर महोदय कपड़ों के प्रति बहुत संवेदनशील थे! सभी देखते थे कि वह प्रतिदिन नया सूट पहनकर यूनिवर्सिटी आते हैं! मजाल है कि कभी उनके कोट में कोई शिकन तक दिखाई दे जाये! उन्हें देखकर व उनकी वस्त्रों के प्रति अनुरक्ति देखकर प्रोफेसर्स भी ड्रेस के प्रति सावधान रहते थे! वह आक्सफोर्ड विश्व-विद्यालय में एक लम्बी अवधि तक रहे थे, अत: सुरूचिपूर्ण वस्त्र पहनना उनके लिये फैशन नहीं, सभ्यता और सुसंस्कृति का परिचायक था! अंग्रेजों ने अपने अभिजात्य का प्रदर्शन करते हुये परिधानों पर सर्वाधिक ध्यान दिया था! प्रत्येक अवसर के लिये उन्होंने पृथक-पृथक ड्रेस ईजाद की थीं! वाकिंग सूट, स्लीपिंग सूट, ब्रेकफास्ट सूट, डिनर सूट, क्लब सूट, स्पोर्ट सूट! इंग्लैंड में भले ही प्रजातंत्र हो गया था पर उन्होंने रानी का पद और मर्यादा कम नहीं की थी! शोर सुनकर वह भी अपने कक्ष से निकलकर बाहर आये! सभी लोग उन्हें अभिवादन कर एक ओर हट गये!
उन्होंने एक प्रोफेसर से पूछा- “आखिर मामला क्या है? आप सभी लोग बाहर क्या कर रहे हैं?”

जब तक प्रोफेसर कुछ उत्तर देते, भीड़ को चीरते हुये रजनीश……

एक फक्कड़ मसीहा
ओशो…