कल्पना क्या है?

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कल्पना ही तो सताती है, परेशान करती है। कल्पना कहती है और थोड़ा सुधार लो, फिर भोग लेना; और थोड़ा सुधार लो, फिर भोग लेना। दस हजार हैं, दस लाख हो जाने दो फिर भोग लेना। दस हजार तो जल्दी चुक जाएंगे। दस लाख कर लो।
जब तक दस लाख हो पाते हैं, कल्पना चार डिग आगे बढ़ जाती है। वह करोड़ों की बात करने लगती है। कल्पना तुम्हारे साथ ठहरती नहीं। कल्पना सदा उड़ी-उड़ी है, तुमसे सदा आगे है। इसलिए कल्पना तुम्हें कभी इस हालत में नहीं आने देती कि तुम कह सको, अब तैयार हूं, भोग लूं। इसके पहले कि कल्पना थके, मौत आ जाती है।
ओशो