ध्यान मन की मौत है।

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तो मन तुम्हें ध्यान से बचाएगा। वह हजार बहाने खोजेगा। वह कहेगा कि इतनी सुबह, इतनी सर्द सुबह कहां उठकर जा रहे हो? थोड़ा विश्राम कर लो। रात भर वैसे तो नींद ही नहीं आई, और अब सुबह से ध्यान? वैसे तो थके हो, अब और थक जाओगे। शांत पड़े रहो। कल चले जाना। इतनी जल्दी भी क्या है? कोई जीवन चुका जा रहा है?

हजार बहाने मन खोजता है। कभी कहता है, शरीर ठीक नहीं है, तबीयत जरा ठीक नहीं है; कभी कहता है, घर में काम है; कभी कहता है, बाजार है, दुकान है। हजार बहाने खोजता है। ध्यान से बचने; की मन पूरी कोशिश करता है। क्योंकि ध्यान सीधा रास्ता है जो मंदिर में ले जाता है; वह यहां—वहां नहीं ले जाता है।

ओशो