प्रेम और मौत

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मैं तुम से कहता हूं : प्रेम ही समझदारी है, क्योंकि प्रेम ऐसी सम्पदा कमाता है जिसको मौत छीन नहीं पाती। प्रार्थना में तुम ऐसे साम्राज्य के मालिक हो जाते हो जिस पर आंच ही न पड़ेगी। चिता पर जल जायेगी तुम्हारी देह और पड़ा रह जायेगा देह से तुमने जो कमाया था। लेकिन देह के भीतर जो देह है, देह के पार जो है, अदेही जो है, प्रेम उसे जान लेता है, पहचान लेता है। और उससे पहचान हो जाये तो तुम्हारा अमृत से संबंध जुड़ गया। और माना कि प्रेम स्वप्न है – अभी तो स्वप्न ही है, क्योंकि अभी तो तुम व्यर्थ की चीजों को यथार्थ समझ कर उनके पीछे दीवाने हो, इसलिए प्रेम स्वप्न है – लेकिन मैं तुमसे कहता हूं – ऐसा स्वप्न, जो सत्य बन सकता है : ऐसा स्वप्न जो तुम्हें सत्य के द्वार तक ले आये।

प्रेम करो। जितना कर सको उतना करो। बेझिझक, बेशर्त प्रेम करो। मनुष्य से करो, पशुओं से करो, पक्षियों से करो, पौधों से करो, पत्थरों से करो। जितना कर सको करो। प्रेम को जितना लुटाओगे उतना ही परमात्मा को अपने निकट पाओगे। प्रेम सेतु है……

ओशो