ये क्रोध है क्या?

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बुद्ध ने कहा है कि जब मैंने जाना तो मैंने पाया है कि अदभुत हैं वे लोग, जो दूसरों की भूल पर क्रोध करते हैं!
क्यों? तो बुद्ध ने कहा कि अदभुत इसलिए कि भूल दूसरा करता है, दंड वह अपने को देता है। गाली मैं आपको दूं और क्रोधित आप होंगे। दंड कौन भोग रहा है ? दंड आप भोग रहे हैं, गाली मैंने दी! क्रोध में जलते हम हैं, राख हम होते हैं, लेकिन ध्यान वहां नहीं होता !

जब क्रोध आ जाये तो उस आदमी को धन्यवाद दें, जिसने क्रोध पैदा करवा दिया, क्योंकि उसकी कृपा, उसने आत्म-निरीक्षण का एक मौका दिया; भीतर आपको जानने का एक अवसर दिया। उसको फौरन धन्यवाद दें कि मित्र धन्यवाद, और अब मैं जाता हूं, थोड़ा इस पर ध्यान करके वापस आकर बात करूंगा।

द्वार बंद कर लें और देखें कि भीतर क्रोध उठ गया है। हाथ-पैर कसते हों, कसने दें; क्योंकि हाथ-पैर कसेंगे। हो सकता है कि क्रोध में, अंधेरे में, हवा में, घूंसे चलें; चलने दें। द्वार बंद कर दें और देखें कि क्या-क्या होता है। अपनी पूरी पागल स्थिति को जानें और पागलपन को पूरा प्रकट हो जाने दें अपने सामने।

तब आप पहली बार अनुभव करेंगे कि क्या है यह क्रोध।  जब आप इस पागलपन की स्थिति को अनुभव करेंगे तो कांप जायेंगे भीतर से, कि यह है क्रोध।  यह मैंने कई बार किया था, दूसरे लोगों ने क्या सोचा होगा !

मनोवैज्ञानिक कहते हैं, क्रोध संक्षिप्त रूप में आया हुआ पागलपन है, क्षणिक पागलपन है।  क्षण भर में आदमी उसी हालत में हो गया, जिस हालत में कुछ लोग सदा के लिए हो जाते हैं।  क्रोध में जलते हुए आदमी में और पागल आदमी में मौलिक अंतर नहीं है।  अंतर सिर्फ लंबाई का है। पागल आदमी स्थायी पागल है, क्रोधी आदमी अस्थायी पागल है।

आपने कभी देखा है अपने को क्रोध में? अतः द्वार बंद कर लें। और अपनी पूरी हालत को देखें कि यह क्या हो रहा है। और रोकें मत, प्रकट होने दें, जो हो रहा है। और उसका पूरा निरीक्षण करें, तब आप पहली दफा परिचित होंगे, यह है क्रोध।