समर्पण

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बहुत धीमे से आँख बंद कर लें, जैसे पलक गिरा दी है, आँख बंद हो गई है। आँख पर भी जोर नहीं होना चाहिए, और अपने को बिल्कुल ढीला छोड़ दें।

आँख बंद कर लें और ढीला छोड़ दें। अब कल्पना करें कि एक बड़ी नदी बही जा रही है। पहाड़ों के बीच में एक बड़ी नदी बही जा रही है। जोर की लहरें हैं, जोर का बहाव है। पहाड़ी नदी है।

भीतर देखें कि दो पहाड़ों के बीच में एक बड़ी नदी तेजी से बही जा रही है। जोर का बहाव है, जोर कि आवाज है, लहरें हैं, तेज नदी है, और नदी बही जा रही है। देखें, उसे स्पष्ट देखें। नदी तेजी से बही जा रही है। वह साफ दिखाई पड़ने लगेगी।

इस नदी में आपको उतर जाना है, लेकिन तैरना नहीं है, बहना है, जस्ट फ्लोटिंग! इस नदी में आप उतर जाएं और बहना शुरू कर दें। हाथ-पैर न चलाएं, सिर्फ बहे जाएं, बहे जाएं। हाथ-पैर चलाये ही मत। तैरना नहीं है, सिर्फ बह जाना है।

नदी में हमने अपने को छोड़ दिया है, और नदी भागी चली जा रही है, और हम उसमें बहे जा रहे हैं, बहे जा रहे हैं, बहे जा रहे हैं। कहीं पहुंचना नहीं है, किसी किनारे पर नहीं जाना है। कोई मंजिल नहीं है, इसलिए तैरने का कोई सवाल नहीं है। बस सिर्फ बहना है। छोड़ दें, और बहें!

नदी में बहने की जो अनुभूति होगी, वह फिर ध्यान को समझने में सहयोगी होगी। एक पांच मिनट के लिए इस नदी में छोड़ दें, और बहते जाएं। नदी का कोई अंत नहीं है, वह बही ही चली जा रही है। आप भी उसमें बहने लगे हैं। कुछ करना नहीं है, हाथ-पैर भी नहीं चलाना है, सिर्फ बहते जाना है, बहते जाना है।

देखें, नदी बह रही है, आप भी उसके साथ बहने लगे हैं। जरा भी तैरते नहीं हैं, बस बहे जा रहे हैं।

जरा भी तैरना नहीं है। हाथ-पैर भी नहीं हिलाना है। बहे जा रहे हैं — जैसे एक सूखा पत्ता नदी में बहता चला जाता है, ऐसे ही छोड़ दें। देखें, बहते चले जा रहे हैं, बहते चले जा रहे हैं, बहते चले जा रहे हैं।

और, बहने के साथ ही साथ एक अनुभव होना शुरू हो जाएगा — समर्पण का, सरेंडर का! नदी के साथ छोड़ दें अपने को, लेट गो का एक अनुभव होना शुरू हो जायेगा!

ओशो
ध्यान विज्ञान