स्‍त्री और पुरुष

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हम कहानी सुनते हैं कि सत्यवान मर गया है, सावित्री उसे दूर से जाकर लौटा लायी है। लेकिन कभी कोई कहानी ऐसी सुनी कि पत्नी मर गयी हो और पति दूर से जाकर लौटा लाया हो। नहीं सुनी है हमने।

स्रियां लाखों वर्ष तक इस देश में पुरुषों के ऊपर बर्बाद होती रही हैं। मरकर सती होती रही है। कभी ऐसा सुना, कि कोई पुरुष भी किसी स्‍त्री के लिए सती हो गया हो? क्योंकि सारा नियम, सारी व्यवस्था, सारा अनुशासन पुरुष ने पैदा किया है। वह स्‍त्री पर थोपा हुआ है। सारी कहानियां उसने गढ़ी है। वह कहानियां गढ़ता है, जिसमें पुरुष को स्‍त्री बचाकर लौट आती है। और ऐसी कहानी नहीं गढ़ता, जिसमें पुरुष स्‍त्री को बचाकर लौटता हो।

स्‍त्री गयी कि पुरुष दूसरी स्‍त्री की खोज में लग जाता है, उसको बचाने का सवाल नहीं है। पुरुष ने अपनी शुविधा के लिये सारा इलजाम कर लिया है। असल में जिसके पास थोड़ी—सी भी शक्ति हो, किसी भांति की, वे जो थोड़े भी निर्बल हों किसी भी भांति से, उनके ऊपर सवार हो ही जाते हैं। मालिक बन ही जाते हैं। गुलामी पैदा हो जाती है।

पुरुष थोड़ा शक्तिशाली है शरीर की दृष्टि से। ऐसे यह शक्तिशाली होना किन्हीं और कारणों से पुरुष को पीछे भी डाल देता है। पुरुष के पास स्ट्रैंग्थ और शक्ति ज्यादा है। लेकिन रेसिस्टेंस उतनी ज्यादा नहीं है, जितनी स्‍त्री के पास है। और अगर पुरुष और स्‍त्री दोनों को किसी पीड़ा में सफरिंग में से गुजरना पड़े तो पुरुष जल्दी टूट जाता है। स्‍त्री ज्यादा देर तक टिकती है। रेसिस्टेंस उसकी ज्यादा है। प्रतिरोधक शक्ति उसकी ज्यादा है। लेकिन सामान्य शक्ति कम है। शायद प्रकृति के लिए यह जरूरी है कि दोनों में यह भेद हो, क्योंकि स्‍त्री कुछ पीड़ाएं झेलती है।

जो पुरुष अगर एक बार भी झेले, तो फिर सारी पुरुष जाति कभी झेलने को राजी, नहीं होगी। नौ महीने तक एक बच्चे को पेट में रखना और फिर उसे जन्म देने की पीडा और फिर उसे बड़ा करने की पीड़ा, वह कोई पुरुष कभी राजी नहीं होगा। अगर एक रात भी एक छोटे बच्चे के साथ पति को छोड़ दिया जाय तो या तो वह उसकी गर्दन दबाने की सोचेगा या अपनी गर्दन दबाने की सोचेगा।